क्या है भूमि अधिग्रहण बिल ! जिसकी वजह से मचा है बबाल .......

भूमि अधिग्रहण बिल ………… 


भूमि अधिग्रहण बिल पर मोदी सरकार मुश्किल में नजर रही है। एक तरफ विपक्ष सरकार को घेरने को तैयार बैठा है तो दूसरी तरफ अन्ना हजारे ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए दो दिन के लिए जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए हैं। आखिर इस बिल में ऎसा क्या है, जिसकी वजह से यह मोदी सरकार के गले की फांस बन गया है। हम बताते हैं कि राजग सरकार द्वारा किए गए वे बदलाव जिसकी वजह से इसे लेकर संसद और उसके बाहर सडकों पर बवाल मचा हुआ है। 


मुकदमेबाजी को लेकर बदलाव …
जमीन अधिग्रहण पर संप्रग सरकार के बिल में सबसे अहम बदलाव रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज को लेकर किया है। 2013 के कानून में यह व्यवस्था की गई थी कि अगर किसी जमीन के अधिग्रहण को कागजों पर 5 साल हो गए हैं, लेकिन सरकार के पास जमीन का कब्जा नहीं है और मुआवजा भी नहीं दिया गया है, तो मूल मालिक जमीन को वापस मांग सकता है। लेकिन राजग सरकार ने इसमें यह प्रावधान जोड दिया है कि अगर मामला अदालत में चला गया है तो मुकदमेबाजी के वक्त को 5 साल की मियाद में नहीं जोडा जाएगा। 


पांच साल वाली शर्त हटाई ……
पुराने बिल के तहत जमीन लेने के बाद कंपनियों को पांच साल के भीतर उस पर काम शुरू करना जरूरी था, लेकिन अब यह पाबंदी हटा ली गई है। पुराने बिल में व्यवस्था थी कि पांच साल के भीतर काम शुरू होने पर जमीन मालिक इस पर दोबारा दावा पेश कर सकते हैं, लेकिन राजग सरकार ने इस पाबंदी को हटाते हुए इसे असीमित कर दिया है। 


मुआवजे की परिभाषा बदली ……… 
सरकार ने रेट्रोस्पेक्टिव क्लॉज के तहत मुआवजे की परिभाषा को भी बदल दिया है। पुराने बिल के मुताबिक अगर संबंधित व्यक्ति को मिलने वाला मुआवजा उसके खाते में नहीं गया है और सरकार ने अदालत में या सरकारी खाते में मुआवजा जमा करा दिया है, उसे मुआवजा नहीं मानने का प्रावधान था, लेकिनअब यह &प्त8206;प्रावधान किया गाया है कि संबंधित के खाते में मुआवजा जमा नहीं हुआ है, लेकिन उसकी राशि कोर्ट या सरकार में जमा करा दी गई है, उसे मुआवजा ही माना जाएगा। 


जवाबदेही प्रावधान में ढील ……
राजग सरकार ने कानून की अनदेखी करने और कानून तोडने वाले अधिकारियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए रखे गए प्रावधान भी ढीले किए हैं। बिल में नए बदलाव के मुताबिक किसी अफसर पर कार्रवाई के लिए अब संबंधित विभाग की अनुमति लेना जरूरी होगा, यानि अफसर साफ बच निकलेंगे। 


भूमिधारी की सहमति जरूरी नहीं .......... 
2013 के बिल में एक महत्वपूर्ण प्रावधान था संबंधित भूमिधारी की की सहमति। इसके तहत सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जरूरी थी, जबकि अगर परियोजना पूरी तरह सरकारी है तो इसके लिए 70 प्रतिशत मालिकों की मंजूरी जरूरी थी। लेकिन नए बिल में इसे खत्म कर दिया गया है। 



जमीन अधिग्रहण में सरकार मिली स्वच्छंदता ……… 
केंद्र सरकार ने जिस तरह से नया अध्यादेश जारी किया है, उससे साफ है कि जमीन मालिक चाहे अथवा चाहे, भूमि अधिग्रहण में सरकार निरंकुश होकर भूमि अधिग्रहण कर सकेगी। अगर भूमिधारी मुआवजा लेने से इनकार करता है तो इसे सरकारी खजाने में जमा कर उसे उसकी भूमि से बेदखल किया जा सकेगा। 

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