कितनी मुश्किल है काले धन की वापसी?



                कैसे जाता है काला धन देश से बाहर?





भारत में काले धन के मुद्दे पर होने वाली सारी बहस निवेश के आसपास घूमती नज़र आती है. लेकिन इसमें आय के प्रवाह को नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है.
सबसे पहली बात आय और उसके प्रवाह को संपत्ति (या स्टॉक) से अलग करके देखने की ज़रूरत है.
आय का प्रवाह हर हफ़्ते, हर महीने और साल चलता रहता है. लेकिन आय में से बचत होने के बाद ही संपत्ति का निर्माण होता है.

कितनी मुश्किल है काले धन की वापसी?

लोगों की जो बचत होगी वह किसी बैंक खाते में जमा होगी या किसी संपत्ति में उसका निवेश किया जाएगा. काले धन के बारे में जो अनुमान लगाया जाता है, उसमें दोनों चीज़ें शामिल होती हैं.
काले धन पर होने वाली बहस कैसे निवेश के ऊपर अटकी हुई है और काला धन देश से बाहर कैसे जाता है?

पढ़िए काले धन पर किया गया विश्लेषण

पारंपरिक तौर पर लोग सोचते हैं कि उच्च आय वर्ग के लोग कर देने और उसकी जानकारी सार्वजनिक करने से बचते हैं.
भारत में काले धन की सारी बहस निवेश के आसापास घूमती नज़र आती है.
वहीं घूस से बटोरी गई संपत्ति ग़ैर क़ानूनी होती है, इसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया गया है.
अगर इसके बारे में अनुमान लगाया जाए तो कहा जा सकता है कि सरकारी (केंद्र और राज्य) ख़र्च का लगभग 30 फ़ीसदी तक ग़ैर क़ानूनी संपत्ति में तब्दील हो जाता है.
इसका तीसरा पहलू हैं स्वायत्तशासी संस्थाएं और एजेंसियां जिनका बजट सरकारी ख़र्च के बजट से नहीं आता. इसमें भी भ्रष्टाचार होता है.
हमारी जो पारंपरिक समझ है कि जहां उद्योगपति कर देने से बच रहे हैं वहां ग़ैर क़ानूनी आय हो रही है.
लेकिन मान लीजिए अगर किसी क्लर्क के घर से दस लाख रुपए बरामद होते हैं तो वह भी ग़ैर क़ानूनी है क्योंकि उसने यह पैसा भ्रष्टाचार के माध्यम से हासिल किया है.

कहां जाती है ग़ैर क़ानूनी आय

इस तरह से होने वाली आय का ज़्यादातर हिस्सा तो लोग ख़र्च कर देते हैं. जिन लोगों के पास बहुत ज़्यादा ग़ैर क़ानूनी पैसा होगा उसी का निवेश होता है. आमतौर पर इसका निवेश ज़मीन में होता है.
अभी काले धन के नाम पर जो बहस हो रही है उसमें निवेश किए गए धन की बात हो रही है. लेकिन पूरी अर्थव्यवस्था में आय का जो प्रवाह चल रहा है, उस मसले पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
भारत में लोगों का बैंक खाता है और अगर उन्होंने विदेश में बैंक खाता खोला है तो हवाला मार्केट के माध्यम से पैसे विदेश चले जाते हैं.
हमारे देश के बहुत सारे लोग बाहर रहते हैं, हवाला का कारोबार करने वाले उनका इस्तेमाल करते हैं.
यह एक तरह की ब्लैक मार्केट है, जिसके माध्यम से पैसा मंगाया और भेजा जाता है. इस तरह से पैसा भेजना आसान है.

काले धन पर कड़ाई

पारंपरिक तौर पर तो बाहर के देशों को विकासशील देशों से आने वाले पैसे को जमा करने में परेशानी नहीं थी. लेकिन अब विदेशी बैंकों में पैसा रखना कठिन है.
पिछले पाँच सालों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काले धन को उजागर करने और अपने देश में वापस लाने में लोगों की रुचि बढ़ी है.
अमरीका और जर्मनी दोनों ने महसूस किया है कि वहां भी काला धन बन रहा है.
इस कारण से वहां काले धन के मसले पर ज़्यादा कड़ाई हो रही है.
अमरीका में ढेर सारी वित्तीय व्यवस्थाएं हैं और जर्मनी यूरोप में शक्तिशाली है. उनके जो क़ानून, नियम और नियंत्रण के तरीक़े हैं उसमें बदलाव होने लगे हैं.

कहां से आया पैसा?

इस मुद्दे पर जी-20 में चर्चा हुई है. टैक्स हैवेन की बात अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) में हुई है.
पिछले पाँच सालों में तथाकथित काले धन और संपत्ति की तरफ़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है.
जैसे पहले अमरीका में रहने वाले भारतीय अमरीकी दो खाते रखते थे.
लेकिन अगर अमरीका में इसकी जाँच होती है तो उनके खातों की सारी जानकारी हो जाती है.
काले धन के ख़िलाफ़ बने माहौल की एक वजह चरमपंथ और इसको मिलने वाली वित्तीय मदद को रोकने भी है. इसके कारण अब विदेशों में भी सवाल पूछा जा रहा है कि पैसा कहां से आया है?

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